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Saturday, 9 September 2017

दहेज़प्रथा का समर्थन करता बेटी का पिता


अज़ाद खबर संवाददाता, मंजुल मंजरी ( बिहार )
( दहेज़रोधी विशेषज्ञ )

“मेरी प्यारी गुडिया रानी ...तुझे मैं एक सुन्दर राजकुमार सा दूल्हा लाकर दूंगा ...जो तुझे जीवन भर पलकों पर बिठा कर रखेगा ” ..प्रत्येक  बाप का अपनी बेटी के प्रति किया गया वादा ...जो उसे लालच देता है एक ऐसे सुखद भविष्य को जिसे वर्तमान में संजोये गए सपनों से खरीदा जाना है ...पिता चाहता है की उसकी बेटी की शादी एक ऐसे व्यक्ति से हो जो सफल हो समाज में और ऊँचे रसूख वाला भी हो ...एक पिता की अपनी बेटी के प्रति यह सोच गलत भी नही है ...मगर उसे पता है की बिटिया के लिए ऐसे सुन्दर राजकुमार को ज़िन्दगी में लाने के लिए एक भारी कीमत अदा करनी होगी ...जिसे दहेज़ कहा  जाता है ....
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पिता का यही भावुक लालच वर पक्ष में जाकर पैसे के लालच में तब्दील हो जाता है ...वर का पिता बेटी का पिता का सपना पूरा करने के लिए एक मोती रकम की मांग करता है ..यदि बेटी का पिता सक्षम है तब तो मांग से ज्यादा अदायगी कर दी जाती  है ..लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर पिता अपने बेटी का नया घर सजाने में उसके पुराने घर (मायके ) तक को गिरवी रख देता है ...और एक ऐसा कर्ज़दार बन जाता है ..जिसे चुकाने में उसकी बूढी हड्डियाँ चटक जाती हैं ...फिर भी वर पक्ष की मांग खत्म नही होती ...एक सफल दामाद की चाहत में बेटी का पिता इस दहेज़ रूपी कर्मकांड का मुख्य वाहक बन जाता है ...
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सब जानते हैं की दहेज़ एक कानूनी अपराध है साथ में समाज का गन्दी कुरीति भी ..मगर इसे ख़त्म करने की पहल कोई नही करना चाहता ..क्योंकि लालच सबके अन्दर है ..बेटी के पिता को एक अच्छे वर की और बेटे के पिता को अच्छी रकम की ...दोनों ही समान रूप से इसके अपराधी भी हैं और भुक्तभोगी भी ...आईएस ,डॉक्टर ,इंजिनियर और सरकारी नौकरी में कार्यरत दुल्हों का शादी का रेट क्या है ..ये सभी लोगों को पता है ..यानी हम सब इस वर मंदी के खरीददार भी हैं ..और दुकानदार भी ...
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क्या इस दहेज़ रूपी कुरीति से बेटी का बाप कभी बाहर आ सकता है ...हाँ क्यों ..आ सकता है ..यदि हम अपनी बेटियों को ही आत्मनिर्भर बना दे ..तब ..उन्हें खुद अपनी जीवनसाथी को चुनने में उनकी सहमती देने का अधिकार प्रदान करें ...एक राजकुमार पाने के ख्वाब दिखाने के बजाय उसे शिक्षित कर वास्तविक रूप में आर्थिक आत्मनिर्भर बनाये तब ...हम क्यों नही बेटियों को उसकी शादी के बजाय उसके करियर को तरजीह देते हैं ..आखिर क्यों एक लड़का ही अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए दवाब में रहे ...आप अपनी बेटियों को इतना सशक्त क्यों नही बनाते की कल बेटे का पिता अपने बेटे को यह ख्वाब दिकाए की तुम्हारे लिए एक सफल पत्नी लाकर दूंगा ..जो तुम्हारा हर कदम पर साथ निभाएगी ...आप अपनी लालच को बेटी के सफल करियर के लाच में क्यों तब्दील नही करते ...यदि आपकी बिटिया कमाने और घर चलाने में खुद ही सक्षम होगी ..तो क्या ज़रूरत पड़ेगी महंगा वर खरीदने की ...
.................................................................................याद रखें :-बेटियों को नाज़ुक राजकुमारी न बनाकर पालें ..उन्हें मौक़ा दें एक सफल युवती बनने में ...और सफलता पाने के बाद किसी राजकुमार की नही उसे एक अच्छे जीवनसाथी की जरूरत पड़ेगी ..जो दहेज़ के बगैर भी संभव है ...

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