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Tuesday 3 October 2017

बेअसर क्यों दिख रहा ‘मिशन जीरो ऐक्सिडेंट’



साभार नवभारत टाईम्स 
अनिल गलगली ( मुंबई  )
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पिछले रेल मंत्री सुरेश प्रभु का यह मिशन आंकड़ों में सुधार के जो भी कागजी दावा करे, हादसों की निरंतरता इसकी सार्थकता पर एक बड़ा सवाल बन कर खड़ी है।


देश की आर्थिक राजधानी होने का गौरव प्राप्त मुंबई शहर की पहचान अब धीरे-धीरे बदलती जा रही है। मुंबई की लाइफ लाइन कही जाने वाली लोकल रेलवे की चरमराती सेवा का ही असर था कि पिछले दिनों भगदड़ में 23 जान चली गई। ठोस प्रबंधन और उचित उपाय योजना के अभाव में रेल मंत्रालय का महत्वाकांक्षी ‘मिशन जीरो ऐक्सिडेंट’ भी मौत का खेल रोकने में टांय-टांय फिस्स साबित हुआ है। 

मुंबई उपनगरीय रेलवे के एलिफिंस्टन स्टेशन के जिस फुटओवर ब्रिज पर यह दर्दनाक हादसा हुआ उसके विस्तारीकरण की गुहार महापौर से लेकर विधायक और सांसद तक सभी लगा चुके थे। हाल तक रेल मंत्री रहे सुरेश प्रभु को भी इसकी शत-प्रतिशत जानकारी थी। उन्होंने पहले फंड न होने का बहाना कर सांसद अरविंद सावंत का मोहभंग किया था। उसके बाद सांसद राहुल शेवाले की मांग पर मंजूरी दी भी तो इंस्पेक्टर राज में प्रस्ताव लटक गया। इसका खुलासा मौजूदा रेलमंत्री पीयूष गोयल के उस बयान से होता है जिसके मुताबिक हादसे के दिन ही इस पुल के ठेके का टेंडर अपलोड होनेवाला था। यानी सीधे तौर पर कहा जाए तो ये 23 लोग रेलवे की मानवीय भूल की भेंट चढ़ गए। 

मुंबई में रेल हादसे के आंकड़े सहमा देते हैं। यहां 2002 से 2013 के दौरान रेल दुर्घटनाओं में कुल 39 हजार 970 यात्री मौत का शिकार हुए तथा 40 हजार 526 यात्री घायल हुए। इसी अवधि में रेल पटरी पार करते हुए 6154 लोगों की मौत हुई और 1885 लोग घायल हुए। चलती गाड़ी से गिरने से 2304 लोगों की मौत हुई और 5936 यात्री घायल हुए। 

सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की बात कहते हुए ही दुर्घटनाओं पर रोकथाम के लिए तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने 2016-17 के रेल बजट में दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ‘मिशन जीरो ऐक्सिडेंट’ के नाम से विशेष अभियान शुरू किया था। आंकड़ों में सुधार के जो भी दावे किए जाएं, हादसों की निरंतरता इस मिशन की सार्थकता पर सवालिया निशान बन कर खड़ी है।

रेलवे मंत्रालय ने 2015 में अपने एक मूल्यांकन में बताया था कि 4,500 किलोमीटर रेलवे ट्रैक को दुरुस्त करने की जरूरत है। मगर फंड की कमी के कारण ये बेहद जरूरी काम नहीं हो रहा है। 2015 में केवल 2,100 किलोमीटर ट्रैक के नवीनीकरण का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार 2016-17 के दौरान 1,503 मानवरहित रेल क्रॉसिंग को खत्म किया गया। ऐसे ही 484 मानवयुक्त रेल फाटकों को ओवरब्रिज या अंडरब्रिज बनाकर खत्म किया गया।

विकसित देशों में ऐसे हादसे कम होते हैं क्योंकि वहां इंसान की जिंदगी की फिक्र होती है। भारत में यह संवेदना अब भी ना के बराबर हैं। ऐसी स्थिति में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों को कड़ी सजा देने का प्रावधान होना चाहिए। निलंबन से अधिक ऐसे लापरवाह अधिकारियों और कर्मचारियों को तुरंत बर्खास्त करने की जरूरत है। 

इसके अलावा सभी ट्रेकों को डबल करने का काम शुरू होना चाहिए। जो भी अत्याधुनिक तकनीक हैं उनको काम में लाया जाना चाहिए। हर बार हादसे होने के बाद बस एक ही सुर दुःख का होता है और इससे अलग विपक्ष रेल मंत्री का इस्तीफा मांगकर हादसे को बड़ा आकार देने का प्रयास करता है। आपसी राजनीति किए बिना अगर सत्ता पक्ष और विपक्ष हादसों को रोकने के सवाल पर एक साथ आते हैं तो निश्चित तौर पर कुछ ठोस काम किया जा सकता है।

नए रेल मंत्री पीयूष गोयल ने मुंबई में हुए हादसे के बाद सभी फुटओवर ब्रिजों की सुरक्षा ऑडिट करने की घोषणा की है। सिर्फ मुंबई नहीं, देश के तमाम महत्वपूर्ण शहरों में राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन से मिल कर रेलवे जरूरी परियोजनाओं पर गंभीरता से काम करे तो ‘मिशन जीरो ऐक्सिडेंट’ अब भी सफल हो सकता है।

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